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रविवार, 29 मई 2022

Allahabad High Court Updates : किशोरावस्था में किए गए अपराध के आधार पर नियुक्ति से इनकार करना गलत

मई 29, 2022
Allahabad High Court Updates : किशोरावस्था में किए गए अपराध के आधार पर नियुक्ति से इनकार करना गलत

मामले में याची की किशोरावस्था के दौरान 2010 में प्रयागराज जिले के सोरांव थाने में आईपीसी की धारा 354 ए 447 और 509 के तहत दर्ज मामले में आरोप तय किए गए थे। बाद में उसे आरोपों से बरी कर दिया गया था।



इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि किशोरावस्था में किए गए अपराध के आधार पर किसी को नियुक्ति से इनकार नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि किसी भी बच्चे के सभी पिछले रिकॉर्ड विशेष परिस्थितियों में मिटा दिए जाने चाहिए, ताकि ऐसे व्यक्ति द्वारा किशोर के रूप में किए गए किसी भी अपराध के संबंध में कोई कलंक न रह जाए। क्योंकि, किशोर न्याय अधिनियम का उद्देश्य है कि किशोर को समाज में एक सामान्य व्यक्ति के रूप में वापस स्थापित किया जा सके। यह आदेश न्यायमूर्ति मंजूरानी चौहान ने अभिषेक कुमार यादव की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।


मामले में याची की किशोरावस्था के दौरान 2010 में प्रयागराज जिले के सोरांव थाने में आईपीसी की धारा 354 ए 447 और 509 के तहत दर्ज मामले में आरोप तय किए गए थे। बाद में उसे आरोपों से बरी कर दिया गया था। याची ने रक्षा मंत्रालय विभाग के कैंटीन स्टोर इकाई की ओर से कनिष्ठ श्रेणी क्लर्क के लिए आवेदन किया था। वह चयनित हो गया। याची ने सत्यापन केदौरान अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर के बारे में जानकारी दी थी। इस आधार पर रक्षा मंत्रालय ने उसकी नियुक्ति को निरस्त कर दिया। 


हलफनामे में एफआईआर की जानकारी का खुलासा नहीं

याची ने रक्षा मंत्रालय की कार्यवाही को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। कहा कि प्रतिवादी की तरफ से उसकी सत्यनिष्ठा पर सवाल खड़े किए गए। कहा गया कि आवेदन करते समय अपने हलफनामे में याची ने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर की जानकारी का खुलासा नहीं किया। प्रतिवादी की ओर से सुप्रीम कोर्ट द्वारा अवतार सिंह के मामले में दिए गए आदेश का हवाला दिया गया। कहा गया कि याचिका खारिज किए जाने योग्य है। लेकिन कोर्ट ने यह नहीं माना। कहा कि याची किशोर था।

रक्षा मंत्रालय के आदेश को गलत मानते हुए रद्द कर दिया।

जैसा कि बोर्ड द्वारा उस समय घोषित किया गया था। उसके मामले को किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षणबद्ध अधिनियम 2000) के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए निपटाया गया। कोर्ट ने कहा कि मामले में एक किशोर के रूप में सामना किए जाने वाले आपराधिक अभियोजन के विवरण का खुलासा करने की आवश्यकता निजता के अधिकार और बच्चे की प्रतिष्ठा के अधिकार का उल्लंघन है।


यह किशोर न्याय अधिनियम 2000 द्वारा बच्चों को दी गई मांगी गई सुरक्षा को भी नकारता है। इसलिए याचिकाकर्ता से यह उम्मीद नहीं की जाती है कि वह एक किशोर के रूप में सामना किए गए आपराधिक अभियोजन के विवरण का खुलासा करे। याची के खिलाफ मामला मामूली प्रकृति का था। इसे सरकारी सेवा में प्रवेश के लिए अयोग्यता के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। कोर्ट ने तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए रक्षा मंत्रालय के आदेश को गलत मानते हुए उसे रद्द कर दिया और याची को नियुक्ति करने का आदेश दिया।